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प्रेम के मधु बोल




प्रेम के मधु बोल    (दोहे)


सावन-भादों नयन में, उठत प्रेम की ज्वार।

उर में अति बेचैनियाँ, सत प्रतीकवत प्यार।।


अभिलाषा अंतिम अमित, उर अरु अंतस यार।

पाने को व्याकुल मनुज, शिव युग का मधु प्यार।।


मीठी बोली निष्कपट, त्यागयुक्त अनुराग।

दोषमुक्त संतुष्ट मन, ही प्रेमी का भाग।।


निर्छल सुथरा साफ मन, द्वंद्व रहित अभियान।

यही प्रेम का मर्म है, सहज प्रेम की जान।।


विद्यालय बन प्रेम का,मन से सबको चूम।

स्नेहिल अंतस की रहे, इस धरती पर धूम।।


घृणाविजेता प्रेम शिव, करे जगत से मेल।

सत्य-अहिंसा उपकरण, से ही खेले खेल।।


सुंदर दिव्य प्रवृत्ति का, प्रेम करे उपकार।

रुग्ण दुखी अति दीन का, सदा करे उपचार।।


कुत्सित सोच मिटाय के, प्रेम करे विस्तार।

बुद्धि शुद्धि के मंत्र का, होये आविष्कार।।


मन-काया-उर-आतमा, में नित प्रेम समाय।

निराकार यह अमित नित,दे सबको प्रिय राय।।


दया करुण संवेदना,का होये विस्तार।

मानवता का पाठ ही, बने पुस्तकाकार।।


बोली प्रेम सुशांतमय,विनयावनत प्रसन्न।

आह्लादक मोदक मधुर, रहत हॄदय आसन्न।।


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1 Comments

Renu

23-Jan-2023 04:57 PM

👍👍🌺

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